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नफरती भाषण के वृद्धि के बीच, शिक्षा, मीडिया और नैतिकता इसका मुकाबला कैसे कर सकते हैं

भारत में नफरत फैलाने वाले भाषण, इस्लामोफोबिया घृणास्पद भाषण समावेशन को बढ़ावा दे रहा है

साभार: द लीफलेट

भारत पर पिछले 10 सालों से हिन्दू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) राज कर रही है. भाजपा आरएसएस परिवार की सदस्य है और आरएसएस का लक्ष्य है हिन्दू राष्ट्र का निर्माण. आरएसएस से जुड़ी सैंकड़ों संस्थाएँ हैं. उसके लाखोंबल्कि शायदकरोड़ों स्वयंसेवक हैं. इसके अलावा कई हजार वरिष्ठ कार्यकर्ता हैं जिन्हें प्रचारक कहा जाता है. भाजपा के सत्ता में आने के बाद से आरएसएस दुगनी गति से हिन्दू राष्ट्र के निर्माण के अपने एजेण्डे को पूरा करने में जुट गया है. यदि भाजपा को चुनावों में लगातार सफलता हासिल हो रही है तो उसका कारण है देश में साम्प्रदायिकता और साम्प्रदायिक मुद्दों का बढ़ता बोलबाला. इनमें से कुछ हैं राम मंदिरगौमांस और गोवध एवं लव जिहाद. जो हिंसा हो रही है उसके पीछे अल्पसंख्यकों के खिलाफ दुष्प्रचार है. लोगों को यह सिखाया-बताया जा रहा है कि वे अल्पसंख्यकों से नफरत करें. इस नफरत को फैलाने के लिए एक अत्यंत कुशल और विशाल मशीनरी खड़ी कर दी गई है. इसमें शामिल है आरएसएस की शाखाएँसंघ द्वारा संचालित स्कूलसंघ के विभिन्न प्रकाशन, गोदी मीडियासोशल मीडियाभाजपा का आईटी सेल आदि. भारत में नफरत फैलाने वाले भाषण देना हमारे कानून के अंतर्गत एक अपराध है मगर फिर भी भाजपा के केन्द्र और कई राज्यों में सत्ता में होने के कारण नफरत फैलाने वाले पूरी तरह बेखौफ हैं. उन्हें पता है कि सरकार और पुलिस उनका कुछ नहीं बिगाड़ेगी.

भारत में नफरत फैलाने वाले भाषण

भारत में नफरत फैलाने वाले भाषण, वाशिंगटन डीसी स्थित एक समूह भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ भाषणों-लेखन आदि के जरिये नफरत फैलाने की घटनाओं का दस्तावेजीकरण करता है. इंडिया हेट लेब नामक इस संगठन की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि सन् 2023 के पहले 6 महीनों में इस तरह की 255 घटनाएँ हुईं. अगले 6 महीनों में इनकी संख्या 413 हो गई अर्थात् इनमें 62 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई. इनमें से 75 प्रतिशत घटनाएँ भाजपा-शासित प्रदेशों और दिल्ली में हुईं. जैसा कि हम जानते हैं कि दिल्ली में कानून-व्यवस्था भारत सरकार के हाथों में है. इनमें से 239 मामलों (36 प्रतिशत) में मुसलमानों के खिलाफ हिंसा का सीधे आह्वान किया गया. करीब 63 प्रतिशत मामलोंजिनकी कुल संख्या 420 थीमें यह कहा गया कि मुसलमान एक षड़यंत्र के तहत हिन्दू महिलाओं से विवाह कर रहे हैंजमीनों पर कब्जा कर रहे हैं और अपनी आबादी बढ़ा रहे हैं. करीब 25 प्रतिशत (169) मामलों में लोगों का आह्वान किया गया कि वे मुसलमानों के आराधना स्थलों पर हमले करें.

इन सब भाषणों और वक्तव्यों का क्या असर हुआ यह हम सब जानते ही हैं. इसके अतिरिक्त भाजपा-शासित प्रदेशों में बुलडोजरों का इस्तेमाल हो रहा है. ये बुलडोजर मुख्यतः मुसलमानों के घरों और दुकानों को ढहा रहे हैं. कुछ मामलों में मस्जिदों को भी ढहाया गया है. समय-समय पर यह आह्वान किया जाता है कि सड़कों और ठेलों से सामान बेचने वाले मुसलमानों और मुस्लिम दुकानदारों का बहिष्कार किया जाये. प्रशासनिक मशीनरी अकसर एकतरफा कार्यवाही करती है. इन सबका नतीजा यह हुआ है कि मुसलमानों में असुरक्षा का भाव बढ़ रहा है और वे अपने मोहल्लों में सिमट रहे हैं. देश में ऐसे मोहल्लों की संख्या कम होती जा रही है जहाँ हिन्दू और मुसलमान एक-दूसरे के पड़ौसी हों. नफरत की दीवारें और ऊँचीऔर मजबूत होती जा रही हैं. नफरत फैलाने वाली बातें सबसे ऊपर से शुरू होती हैं. प्रधानमंत्रीजिन्हें पिछले कुछ समय से विष्णु का अवतार बताया जा रहा हैतक इस तरह की बातें करते हैं. वे कहते हैं कि ‘‘उन लोगों को उनके कपड़ों से पहचाना जा सकता है.’’ वे शमशान-कब्रिस्तान की बात करते हैं और पिंक रेव्युलेशन की भी. उनके नीचे के लोग और खराब भाषा का इस्तेमाल करते हैं और फिर आती हैं धर्म संसदें जिनमें यति नरसिंहानंद जैसे धर्म गुरू सीधे मुसलमानों के खिलाफ हिंसा की बात करते हैं.

यहाँ तक कि संसद में भाजपा सांसद रमेश बिदूड़ी ने अपने साथी सांसद दानिश अली के बारे में अत्यंत निंदनीय और आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया था. उन्होंने दानिश अली को मुल्लाआतंकवादीराष्ट्र-विरोधी, कटुआ और दलाल बताया था. उसके बाद रमेश बिदूड़ी को उनकी पार्टी ने और महत्वपूर्ण पद और ज्यादा जिम्मेदारियाँ दे दीं. इससे साफ है कि अगर आपको भाजपा में आगे बढ़ना है तो आपको मुसलमानों पर हमला करना ही होगा और वह भी भद्दी और निहायत अशिष्ट भाषा में. रमेश बिदूड़ी को लोकसभा अध्यक्ष ने भी कोई सजा नहीं दी. उन्होंने सिर्फ यह कहा कि अगर बिदूड़ी ऐसा ही फिर करेंगे तो उनके खिलाफ कार्यवाही की जायेगी.

हमने देखा कि किस तरह जानीमानी मुस्लिम महिलाओं को अपमानित करने के लिए बुल्ली बाई और सुल्ली डील आदि जैसे बातें की गईं. यह करने वालों को कोई सजा नहीं मिली. हाल में हल्द्वानी में मस्जिद और मदरसे को ढहा दिया गया जिसके कारण भारी साम्प्रदायिक तनाव हुआ. आज सबसे बड़ी समस्या यह है कि देश में निष्पक्ष मीडिया का नामोनिशान नहीं है. सारे बड़े चैनलों के एंकर हर चीज के लिएदेश की हर समस्या के लिएमुसलमानों को दोषी ठहराते हैं.

देश में मुसलमानों के खिलाफ हिंसा तो बढ़ ही रही हैइस्लाम के प्रति भी नफरत फैलाई जा रही है. हम सबने देखा कि किस तरह शिक्षिका तृप्ता त्यागी ने अपनी क्लास के सब बच्चों को एक मुसलमान विद्यार्थी को एक-एक तमाचा मारने को कहा क्योंकि उसने अपना होमवर्क नहीं किया था. एक अन्य अध्यापिका मंजुला देवी ने आपस में लड़ रहे दो मुसलमान लड़कों से कहा कि ये उनका देश नहीं है. बस कंडक्टर मोहन यादव को इसलिए नौकरी से बाहर कर दिया गया क्योंकि उसने बस थोड़ी देर रूकवाई जिस दौरान कुछ यात्री शौच आदि से निवृत्त हुए और कुछ ने नमाज अदा की.

हमारे समाज और देश के लिए नफरत एक अभिशाप है. यह बात हमारे शीर्ष नेताओं ने बहुत पहले समझ ली थी. एक मुस्लिम द्वारा स्वामी श्रद्धानंद की हत्या के बाद महात्मा गाँधी ने अपने अखबार यंग इंडिया’ में लिखा कि ‘‘…हमें वातावरण को नफरत से मुक्त करना है और हमें ऐसे अखबारों का बहिष्कार करना है जो नफरत फैलाते हैं और चीजों को तोड़मरोड़ कर प्रस्तुत करते हैं.’’ यहाँ गाँधीजी बता रहे हैं कि कैसे उस समय भी कुछ अखबार नकारात्मक भूमिका अदा करते थे. महात्मा गाँधी की हत्या के बाद गोलवलकर को लिखे एक पत्र में सरदार वल्लभ भाई पटेल ने आरएसएस को नफरत फैलाने के लिए दोषी ठहराया. ‘‘उनके सारे भाषण साम्प्रदायिकता के जहर से भरे रहते थे. हिन्दुओं की सुरक्षा के लिए जहर फैलाना और उन्हें भड़काना जरूरी नहीं था. इसी जहर के नतीजे में देश को महात्मा गाँधी की मूल्यवान जिंदगी से हाथ धोना पड़ा.’’

चीजें अब घूमकर वहीं की वहीं आ गई हैं. आरएसएस फिर से नफरत फैला रहा है. स्वयंसेवकोंप्रचारकों और सरस्वती शिशु मंदिरों के अतिरिक्त मीडिया का एक बड़ा हिस्सा भी इसमें मददगार है. मीडिया ने सत्ता के आगे पूरी तरह घुटने टेक दिये हैं. मीडिया हिंसा और नफरत को बढ़ावा दे रहा है. यही नफरत बुल्ली बाई और सुल्ली डीलतृप्ता त्यागी और मंजुला देवी का निर्माण करती है. ऐसे स्कूलों में जहाँ सभी धर्मों के बच्चे पढ़ते हैंमुस्लिम बच्चों के लिए समस्यायें खड़ी हो रही हैं.

नफरत हमारे संविधान के एक मूलभूत मूल्य – बंधुत्व – के विरूद्ध है. यह उस हिन्दू धर्म के नैतिक मूल्यों के भी खिलाफ है जिसका आचरण महात्मा गाँधी जैसे लोग करते थे. यह वेदों की ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम’’ (पूरी दुनिया एक परिवार है) की शिक्षा पर हमला है. धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमला दरअसल हमारे संविधान पर हमला है. नफरत भरे भाषणों से मुकाबला करने के लिए आज हमें गाँधीजी के हिन्दू धर्मवेदों के वसुधैव कुटुम्बकम और भारतीय संविधान के बंधुत्व के मूल्य की जरूरत है.

 

(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनियालेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)।

 

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