झारखंड विधानसभा ने एनआरसी को किया ख़ारिज, एनपीआर को 2010 जनगणना की तर्ज़ पे करने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा

रांची: झारखंड विधानसभा के बजट सत्र के आखिरी दिन हेमंत सोरेन सरकार ने प्रस्ताव पारित कर नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजेन्स (एनआरसी) को ख़ारिज कर दिया और नेशनल पॉप्युलेशन रजिस्टर (एनपीआर) को 2010 के जनगणना के जैसे ही करने के प्रस्ताव पर मुहर लगाया।

देश के कई राज्यों की तरह झारखंड में भी पिछले तीन महीनों से एनआरसी और एनपीआर के खिलाफ कई शहरों में विरोध प्रदर्शन हो रहे थे, जिनमें, प्रदेश की राजधानी रांची, धनबाद, गिरिडीह वगैरह शामिल है।

भाकपा माले के विधायक विनोद सिंह, जिन्होंने न सिर्फ ये मामला कई बार उठाया बल्कि विरोध प्रदर्शन में शामिल भी हुए, एनआरसी और एनपीआर के खिलाफ प्रस्ताव पे ईन्यूज़रूम को बताया, “बेहतर होता अगर प्रस्ताव में 2010 के तर्ज़ पे एनपीआर न लिख कर 2010 के तर्ज़ पे जनगणना लिखा जाता। पर जो अब कोरोना वाइरस के चलते हालात है और विधानसभा भी मेरे भाषण के बाद स्थगित हो गयी इसलिए इसपे कुछ ज़्यादा नहीं किया जा सकता है।”

कुछ ऐसा ही मानना है सामाजिक कार्यकर्ता ज्यां द्रेज का। द्रेज ने ईन्यूज़रूम को कहा, “झारखंड विधानसभा में आज जो प्रस्ताव पारित हुआ उसे एनआरसी-एनआरपी के खिलाफ प्रस्ताव कह भी नहीं सकते। ये सेंटर को भेजा गया एक अनुरोध है। इसमे कोई शक्ति नहीं है।”

झारखंड विधानसभा एनआरसी एनपीआर nrc NPR हेमंत सोरेन सरकार

वहीं, झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ने पार्टी के इस फैसले का स्वागत किया और महासचिव सह प्रवक्ता, केन्द्रीय समिति, सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा, “आज झारखण्ड राज्य विधानसभा में माननीय मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन जी के नेतृत्व वाली सरकार ने राज्य में होने वाले जनगणना में NPR और NRC को खारिज करते हुए एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है। जिससे सम्पूर्ण राज्य में मज़हब के आधार पर लोगों की जनगणना की भाजपा की नापाक इरादे को नेस्तनाबूद करने का काम किया। 2010 के जनगणना को ही इस राज्य का आधार माना जाएगा। यह फैसला झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के इस वायदे को भी पूरा करता है, जो राज्य में अल्पसंख्यक, दलित, मूलवासी-आदिवासी के पहचान के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ को बर्दाश्त नहीं करेगी।

पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के झारखंड प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश एनआरसी-एनपीआर के खिलाफ प्रस्ताव को दुर्भाग्यपूर्ण कहा।

जिसके जवाब में जेएमएम ने कहा, “भाजपा द्वारा सरकार के इस ऐतिहासिक निर्णय का विरोध हास्यास्पद एवं उनके साम्प्रदायिक चरित्र को उजागर करता है। भाजपा में यदि नैतिकता बची हो तो नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली बिहार सरकार से तत्काल समर्थन वापस करे। सत्ता-लोलुपता भाजपा का चरित्रगत गुण है। अलोकतांत्रिक एवं असंसदीय तरीके से सत्ता पर काबिज होने की उनकी जो कोशिशें गोआ, बिहार, कर्नाटक, मध्यप्रदेश में की गई हैं, वो झारखंड में सफल होने वाली नहीं है। इसलिए उनकी झल्लाहट को सहज ही समझ जा सकता है”।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

%d bloggers like this: